Aaj Ki Murli 13 September 2022 – Bk Murli Today Hindi
13-09-2022 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
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मधुबन |
“मीठे बच्चे – तुम आपस में भाई-भाई हो, तुम्हें रूहानी स्नेह से रहना है, सुखदाई बन सबको सुख देना है, गुणग्राही बनना है” | |
प्रश्नः- | आपस में रूहानी प्यार न होने का कारण क्या है? रूहानी प्यार कैसे होगा? |
उत्तर:- | देह-अभिमान के कारण जब एक दो की खामियां देखते हैं तब रूहानी प्यार नहीं रहता। जब आत्म-अभिमानी बनते हैं, स्वयं की खामियां निकालने का फुरना रहता है, सतोप्रधान बनने का लक्ष्य रहता है, मीठे सुखदाई बनते तब आपस में बहुत प्यार रहता है। बाप की श्रीमत है – बच्चे किसी के भी अवगुण मत देखो। गुणवान बनने और बनाने का लक्ष्य रखो। सबसे जास्ती गुण एक बाप में है, बाप से गुण ग्रहण करते रहो और सब बातों को छोड़ दो तो प्यार से रह सकेंगे। |
ओम् शान्ति। अभी तुम बच्चों को यह मालूम है कि बेहद का बाप हमको सतोप्रधान बना रहे हैं और मूल युक्ति बता रहे हैं। बाप बैठ बच्चों को शिक्षा देते हैं कि तुम भाई-भाई हो, आपस में तुम्हारा बहुत रूहानी प्रेम चाहिए। तुम्हारा था तो बरोबर, अब नहीं है। मूलवतन में तो प्रेम की बात ही नहीं रहती। तो बेहद का बाप बैठ शिक्षा देते हैं। बच्चे आजकल, आजकल करते-करते समय बीतता जा रहा है। दिन, मास, वर्ष बीतते जा रहे हैं। बाप ने समझाया है – तुम यह लक्ष्मी-नारायण थे। ऐसा तुमको किसने बनाया? बाप ने। फिर तुम कैसे नीचे उतरते हो। ऊपर से नीचे उतरते-उतरते समय बीतता जा रहा है। वह दिन गया, मास गया, वर्ष गया, समय गया। तुम जानते हो हम पहले सतोप्रधान थे। आपस में बहुत लव था। बाप ने भाईयों को शिक्षा दी है। तुम भाई-भाई का आपस में बहुत प्रेम होना चाहिए। मैं तुम सबका बाप हूँ। तुम्हारी एम आब्जेक्ट ही है – सतोप्रधान बनने की। तुम समझते हो जितना-जितना हम तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते जायेंगे उतना खुशी में गदगद होते रहेंगे। हम सतोप्रधान थे। भाई-भाई आपस में बहुत प्रेम से रहते थे। अभी बाप द्वारा पता चला है कि हम देवतायें आपस में बहुत प्रेम से चलते थे। हेविन के देवताओं की भी बहुत महिमा है। हम वहाँ के निवासी थे। फिर नीचे उतरते आये हैं। पहली तारीख से लेकर आज 5 हजार वर्ष से बाकी कुछ वर्ष आकर रहे हैं। शुरू से लेकर तुम कैसे पार्ट बजाते आये हो – अभी तुम्हारी बुद्धि में है कि देह-अभिमान के कारण एक दो में वह प्यार नहीं है। एक दो की खामियां ही निकालते रहते हैं। तुम आत्म-अभिमानी थे तो ऐसे किसकी खामियां नहीं निकालते थे कि फलाना ऐसा है, इनमें यह है। आपस में बहुत प्यार था। अब वही अवस्था धारण करनी है। यहाँ तो एक दो को उस दृष्टि से देखते, लड़ते झगड़ते हैं। अब वह सब बन्द कैसे हो। यह बाप बैठ समझाते हैं। बच्चे तुम सतोप्रधान पूज्य देवी-देवता थे फिर धीरे-धीरे नीचे गिरते-गिरते तुम तमोप्रधान बने हो। तुम कैसे मीठे थे, अब फिर ऐसा मीठा बनो। तुम सुखदाई थे फिर दु:खदाई बने हो। रावण राज्य में एक दो को दु:ख देने, काम कटारी चलाने लगे हो। सतोप्रधान थे तो काम कटारी नहीं चलाते थे। यह 5 विकार तुम्हारे कितने बड़े शत्रु हैं। यह है ही विकारी दुनिया क्योंकि रावणराज्य है ना। यह भी तुम जानते हो रामराज्य और रावणराज्य किसको कहा जाता है। आजकल करते, सतयुग पूरा हुआ। त्रेता पूरा हुआ, द्वापर पूरा हुआ और कलियुग भी पूरा हो जायेगा। अभी तुम नीचे उतरते सतोप्रधान से तमोप्रधान बन पड़े हो। तुम्हारी वह रूहानी खुशी गुम हो गई है। अब तुमको सतोप्रधान बनना है। मैं आया हूँ तो जरूर तुमको सतोप्रधान बनाऊंगा।
यह भी बाप समझाते हैं – बच्चे जब 5 हजार वर्ष बाद संगमयुग होता है तब ही मैं आता हूँ। तुमको समझाता हूँ, फिर से सतोप्रधान बनो। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। जितना याद करेंगे उतनी खामियां निकलती जायेंगी। तुम जब सतोप्रधान देवी देवता थे तब कोई खामी नहीं थी, अब यह खामियां कैसे निकलेंगी? आत्मा को ही अशान्ति होती है। अब अन्दर जांच करनी है कि हम अशान्त क्यों बने हैं। जब हम भाई-भाई थे तो आपस में बहुत प्यार था। अब फिर वही बाप आया है। कहते हैं अपने को आत्मा भाई-भाई समझो। एक दो से बहुत प्रेम रखो। देह-अभिमान में आने से ही एक दो की खामियां निकालते हो। अब बाप कहते हैं तुम ऊंच पद पाने का पुरूषार्थ करो। तुम जानते हो कि नई दुनिया में बाप ने हमको वर्सा दिया था, 21 जन्मों के लिए एकदम भरपूर कर दिया था। अब बाप फिर आया हुआ है तो क्यों न हम उनकी मत पर चल फिर से पूरा वर्सा लेवें।
तुम मीठे-मीठे बच्चे कितने अडोल थे। कोई मतभेद नहीं था। किसकी निंदा आदि नहीं करते थे। अभी कुछ न कुछ है। वह सब भूल जाना चाहिए। हम सब भाई-भाई हैं। एक बाप को याद करना है। बस यही ओना लगा हुआ है हम जल्दी-जल्दी सतोप्रधान बन जायें। फलाना ऐसा है, इसने यह बोला, इन सब बातों को भूल जाओ। यह सब छोड़ो। बाप कहते हैं – अपने को आत्मा समझो। सतोप्रधान बनने के लिए पुरूषार्थ करो। दूसरे का अवगुण नहीं देखो। देह-अभिमान में आने से ही अवगुण देखा जाता है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। भाई-भाई को देखो तो गुण ही देखेंगे। अवगुण को नहीं देखना चाहिए। सबको गुणवान बनाने की कोशिश करो, तो कभी भी दु:ख नहीं होगा। भल कोई उल्टा-सुल्टा कुछ भी करे, समझा जाता है रजो तमोप्रधान हैं, तो जरूर उन्हों की चाल भी ऐसी ही होगी। अपने को देखना चाहिए कि हम कहाँ तक सतोप्रधान बने हैं? सबसे जास्ती गुण हैं बाप में। तो बाप से ही गुण ग्रहण करो और सब बातों को छोड़ दो। अवगुण छोड़ गुण धारण करो। बाप कितना गुणवान बनाते हैं। कहते हैं तुम बच्चों को भी मेरे समान बनना है। बाप तो सदा सुखदाई है ना। तो सदा सुख देने और सतोप्रधान बनने का फुरना रखो और कोई बात नहीं सुनो। कोई की ग्लानी आदि नहीं करो। सबमें कोई न कोई खामियां हैं जरूर। खामियां भी ऐसी हैं जो फिर खुद भी समझ नहीं सकते। दूसरे समझते हैं कि इनमें यह-यह खामियां हैं। अपने को तो बहुत अच्छा समझते हैं परन्तु कहाँ न कहाँ उल्टा बोल निकल ही पड़ता है। सतोप्रधान अवस्था में यह बातें होती नहीं। यहाँ खामियां हैं परन्तु न समझने के कारण अपने को मिया मिट्ठू समझ लेते हैं। बाप कहते हैं – मिया मिट्ठू तो मैं ही एक हूँ। तुम सबको मिट्ठू अर्थात् मीठा बनाने आया हूँ इसलिए जो भी अवगुण आदि हैं सब छोड़ दो। अपनी नब्ज देखो हम मीठे-मीठे रूहानी बाप को कितना प्यार करता हूँ? कितना खुद समझता हूँ और दूसरों को समझाता हूँ? देह-अभिमान में आ गये तो कोई फायदा नहीं होगा। बाप कहते हैं तुम अनेक बार तमोप्रधान से सतोप्रधान बने हो। अब फिर बनो। श्रीमत पर चल मुझे याद करो। सिर पर पापों का बोझा बहुत है, उसे उतारने का चिंतन रहना चाहिए। देवताओं के आगे जाकर कहते भी हैं कि हम पापी हैं क्योंकि देवताओं में पवित्रता की कशिश है इसलिए उन्हों की महिमा गाते हैं। आप सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण…. हो। फिर घर में आकर भूल जाते हैं। देवताओं के आगे जाते हैं तो अपने से जैसे घृणा आती है। फिर घर में आते हैं तो कोई घृणा नहीं। जरा ख्याल भी नहीं करते कि ऐसा उन्हों को बनाने वाला कौन है!
अब बाप कहते हैं बच्चे यह पढ़ाई पढ़ो। देवता बनना है तो यह पढ़ाई पढ़ना है। श्रीमत पर चलना है। पहले-पहले बाप कहते हैं अपने को सतोप्रधान बनाना है इसलिए मामेकम् याद करो। दैवीगुण भी धारण करने हैं। भाई-भाई समझ एक बाप को याद करो। बाप से यह वर्सा लेना है। यह भी बुद्धि में है। लोग उनकी स्तुति करते फिर दूसरे तरफ उनकी ग्लानी भी करते क्योंकि जानते ही नहीं हैं। कहते हैं कुत्ते बिल्ली में है, सब परमात्मा के रूप हैं। जितना हो सके कोशिश करनी है बाप को याद करने की। भल आगे भी याद करते थे। परन्तु वह थी व्यभिचारी याद, बहुतों को याद करते थे। अब बाप कहते हैं अव्यभिचारी याद में रहो सिर्फ मामेकम् याद करो। भक्तिमार्ग में जिसको तुम याद करते आये हो – सब अभी तमोप्रधान हो गये हैं। आत्मा तमोप्रधान है तो खुद तमोप्रधान, तमोप्रधान को याद करते हैं। अब फिर सतोप्रधान बनना है। वहाँ भक्ति ही नहीं जो याद करना पड़े। बाप समझाते हैं बच्चे बस यही फुरना रखो कि हम सतोप्रधान कैसे बने?
ज्ञान तो बहुत सहज है। बैज पर भी तुम समझा सकते हो – यह बेहद का बाप है, इनसे यह वर्सा मिलता है। बाप स्वर्ग की स्थापना करते हैं। सो तो जरूर यहाँ ही होगी ना! शिव जयन्ती माना स्वर्ग जयन्ती। देवतायें कैसे बनें? इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर इस पढ़ाई से ही बने हैं। सारा मदार पढ़ाई और याद पर है। याद की यात्रा में रहने से फिर और बातें भूल जाती हैं। बाप समझाते रहते हैं बच्चे देह-अभिमान छोड़ो। कोई की खामियों को देखना नहीं हैं। फलाना ऐसा है, यह करता है, इन बातों से कोई फायदा नहीं, टाइम वेस्ट हो जाता है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने में बहुत मेहनत है। विघ्न भी पड़ते हैं। पढ़ाई में तूफान नहीं आते, जितना याद में आते हैं। अपने को देखना है कि हम कहाँ तक बाप की याद में रहते हैं। कहाँ तक हमारा लव है। लव ऐसा होना चाहिए – बस बाप से ही चिटके रहें। वाह बाबा आप हमको कितना समझदार बनाते हो! ऊंच ते ऊंच आप हो फिर मनुष्य सृष्टि में भी आप हमको कितना ऊंच बनाते हो। ऐसे-ऐसे अन्दर में बाप की महिमा करनी है। बाबा आप तो कमाल करते हो। खुशी में गद-गद होना चाहिए। कहते हैं ना – खुशी जैसी खुराक नहीं, तो बाप के मिलने की भी खुशी होती है। इस पढ़ाई से हम यह बनेंगे। बहुत खुशी होनी चाहिए। बेहद का बाप, सुप्रीम बाप हमको पढ़ा रहे हैं। बाबा कितना रहमदिल है। भल आगे भी भगवानुवाच अक्षर सुनते थे परन्तु झूठ होने कारण दिल से लगता नहीं था। ठिक्कर-भित्तर में भगवान है फिर वाच कैसे करेंगे। तुम्हारी बुद्धि में बहुत नई-नई बातें हैं, जो और किसकी बुद्धि में नहीं हैं। आगे चल तुम्हारा दैवी झाड बढ़ता जायेगा। बाप कहते हैं कि सबको पैगाम दो कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। तुम विश्व के मालिक बन जायेंगे और कोई धर्म स्थापक ऐसे कह नहीं सकता, इसलिए उनको पैगम्बर, मैसेन्जर भी कह नहीं सकते। पैगाम तो एक बाप ही देते हैं कि मामेकम् याद करो तो सतोप्रधान बन जायेंगे और सतोप्रधान दुनिया में आ जायेंगे। यह है बाप का पैगाम। सब जगह पैगाम लिख दो। सारा मदार इस पर है। यूरोपियन लोगों के लिए इस चक्र और झाड में सारी नॉलेज है। उन्हों को यही बताना है कि वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है तो वन्डर खायेंगे। अमरनाथ बाबा यह सच्ची अमरकथा सुना रहे हैं, अमरपुरी में ले जाने के लिए। वह है अमरलोक। यह है नीचे मृत्युलोक। सीढ़ी है ना। अभी हम ऊपर जाते हैं फिर नम्बरवार आयेंगे। हमेशा समझो कि शिवबाबा सुनाते हैं, उनको ही याद करते रहो तो भी खुशी रहेगी। शिवबाबा इनमें प्रवेश कर तुम बच्चों को पढ़ाते हैं, यह है वन्डरफुल युगल। बाबा इनको कहते हैं “यू आर माई वाइफ”। तुम्हारे द्वारा मैं एडाप्ट करता हूँ। फिर माताओं को सम्भालने के लिए एडाप्ट किये हुए बच्चों से एक को मुकरर रखते हैं। यह ब्रह्मपुत्रा सबसे बड़ी नदी है। त्वमेव-माताश्च पिता इनको कहते हैं। बाबा खुद कहते हैं – हम चलते-फिरते बहुत खुशी से बाप को याद करता हूँ। याद में कितना भी पैदल करो, कभी थकेंगे नहीं। जितना याद करेंगे उतना चमक आती जायेगी। खुशी में तीर्थों पर कितना दौड़-दौड़ कर ऊपर जाते हैं। वह तो है सब भक्ति मार्ग के धक्के। यह भी खेल है – भक्ति है रात। अब तुम्हारे लिए दिन होता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप से ऐसा लॅव रखना है – जो एक बाप से ही सदा चटके रहें। दिन रात बाप की ही महिमा करनी है। खुशी में गदगद होना है।
2) एक बाप की अव्यभिचारी याद में रह सतोप्रधान बनना है। कभी भी मिया मिट्ठू नहीं बनना है। बाप के समान मीठा बनना है।
वरदान:- | पवित्रता के फाउन्डेशन को मजबूत कर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने वाले सम्पूर्ण और सम्पन्न भव ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन पवित्रता है। ये फाउण्डेशन मजबूत है तो सम्पूर्ण सुख-शान्ति की अनुभूति होती है। यदि अतीन्द्रिय सुख वा स्वीट साइलेन्स का अनुभव कम है तो जरूर पवित्रता का फाउण्डेशन कमजोर है। ये व्रत धारण करना कम बात नहीं है। बापदादा पवित्रता के व्रत को पालन करने वाली आत्माओं को दिल से दुआओं सहित मुबारक देते हैं। इस व्रत में सम्पूर्ण और सम्पन्न भव का वरदान प्राप्त करने के लिए व्यर्थ सोचने, देखने, बोलने और करने में फुलस्टॉप लगाकर परिवर्तन करो। |
स्लोगन:- | सदा एक के अन्त में खोये हुए रहना – यही एकान्तवासी बनना है। |
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